दीपावली को लेकर माँ लक्ष्मी की प्रतिमा को अंतिम रूप देता मूर्तिकार करन पाल ।

महराजगंज । बृजमनगंज नगर पंचायत बृजमनगंज जैसे-जैसे नवरात्र पर्व नजदीक आ रहा है, माँ लक्ष्मी की प्रतिमा को अंतिम रूप देने में कलाकार जुटे नजर आ रहे हैं। कोई पुश्तैनी धंधे को बचाने में मंहगाई से जूझ रहा है, तो कोई आत्म संतुष्टि के लिए अपनी कला का जौहर दिखा रहा है। हर हुनर लाजवाब है। हाथों से मिट्टी को मूर्ति का नायाब रूप मिल रहा है। जिसे देख हर कोई तारीफ प्रशंसा करने पर विवश है। मगर मूर्तियों में जान डालने वाले इन हुनरमंदों के चेहरे पर बेबसी की झलक साफ दिखाई दे रही है।जी हां हम बात कर रहे कलकत्ता से आए कलाकारों की। जो अपने शहर से चलकर करीब तीन माह से प्रतिमा तैयार करने में जुटे हैं। इनके हुनर की पहचान सिर्फ कुछ ही दिनों में चौराहों, गांवों व गलियों में झलकेगी। लेकिन यह कलाकार भी मंहगाई की आग में जल रहे हैं। क्योंकि कड़ी मेहनत के बावजूद इन्हें मनमाफिक रकम मिलने की गुंजाइश नहीं दिख रही है। इनमें कुछ कलाकार ऐसे हैं जो अपने पुश्तैनी धंधे को बचाने में जुटे हैं। डाकघर रोड स्थित हाथों में पेटिंग ब्रश लिए मूर्तिकार करन पाल लक्ष्मी प्रतिमा को अंतिम रूप दे रहे हैं। इनकी कला ऐसी जो भी देखे तारीफ कर बैठे लेकिन यह अंदर से संतुष्ट नजर नहीं आए। बृहस्पतिवार को बातचीत में करन पाल ने बताया कि उनके यहां करीब 35 प्रतिमाएं तैयार की जा रही है, सहयोगी मूर्तिकार भागीरथी पाल, शैलेश पाल, विष्णु पाल,क्लेश पाल,संजय पाल,अपनी कला को उकेरने में लगे हैं। मगर जिस तरह अभी तक आर्डर आ रहे हैं उसको देख ऐसा प्रतीत हो रहा है कुछ प्रतिमाएं बच भी जाएंगी l। कड़ी मेहनत करने के बाद मनमाफिक रकम पर मूर्तिकार करन पाल ने बताया कि जो सोचा था उससे काफी कम रकम मिलने की उम्मीद है। घाटा हो जाए तो कुछ आश्चर्य नहीं होगा। क्या करें पुश्तैनी धंधा है और अब कुछ कर भी नहीं सकते इसलिए इसी काम में लगे रहना उनकी मजबूरी भी है। मूर्तियों में इस्तेमाल होने वाली बांस, लकड़ी, सुतरी, मिट्टी, पेंट, कपड़ा आदि का मूल्य एक वर्ष में दुगने हो गए हैं जबकि मूर्तियों के दाम वहीं है।
( सौरभ जायसवाल की रिपोर्ट)
