पराली बनेगा आय का साधन, प्रशासनिक अधिकारियों ने दिल्ली में आयोजित सेमिनार में सीखे गुण।
महराजगंज। सबकुछ ठीक रहा तो जनपद में किसानों के लिए पराली समस्या न रहकर आय का साधन बनेगी। जिलाधिकारी अनुनय झा की पहल पर 03 जिलास्तरीय अधिकारियों की टीम ने दिल्ली में ” पैकेजिंग ग्रेड के कागज और पेपर बोर्ड के उत्पादन के लिए चावल के भूसे का उपयोग और मोल्डेड टेबलवेयर उत्पादों के लिए चावल के भूसे के गूदे का उपयोग” पर आयोजित पहले विचार-मंथन सत्र में प्रतिभाग किया और विभिन्न संस्थानों और क्षेत्रों से आए विशेषज्ञों के साथ जनपद में पराली व अन्य कृषि अपशिष्टों के उपयोग की संभावनाओं पर चर्चा। सीपीपीआरआई और सीएसआईआर द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित विचार मंथन सत्र में डॉ. एस.के. गोयल, मुख्य वैज्ञानिक एवं प्रमुख, सीएसआईआर-नीरी दिल्ली जोनल सेंटर, डॉ. एम.के. गुप्ता, निदेशक सीपीपीआरआई, सहारनपुर, डॉ. नितिन एंडले, प्रधान वैज्ञानिक, सीपीपीआरआई, डॉ. जे.एस. कामयोत्रा पूर्व सदस्य सचिव, सीपीसीबी, डॉ सुनील गुलिया वरिष्ठ वैज्ञानिक सीपीपीआरआइ सहित विभिन्न विशेषज्ञों के साथ जनपद में चावल व पराली उत्पादन, भूसा सहित बांस और केले के उत्पादन एवं पैकेजिंग ग्रेड के पेपर और मोल्टेड टेबलवेयर में इनके कच्चे माल के रूप में पर्याप्त उपलब्धता पर चर्चा की, जिसमे जिले की ओर से जिला कृषि अधिकारी, सहायक आयुक्त उद्योग और जिला युवा कल्याण अधिकारी ने प्रतिभाग किया। जिला कृषि अधिकारी वीरेंद्र कुमार ने बताया कि सीपीपीआरआई और सीएसआईआर–नीरी द्वारा आयोजित सत्र में पराली से उत्पादों को प्रोत्साहित करने हेतु आवश्यक नीति निर्माण पर भी चर्चा हुई। साथ ही सीपीपीआरआई सहारनपुर के निदेशक डॉ एम.के. गुप्ता ने जनपद में पराली से उक्त उत्पादों के निर्माण के विषय में गहरी रुचि दिखाई। उन्होंने 03 दिसंबर को जनपद में आने और जिला प्रशासन सहित विभिन्न हिताधारकों के साथ चर्चा की इच्छा व्यक्त की। जिला कृषि अधिकारी ने बताया की सबकुछ ठीक रहा तो सीपीपीआरआई जनपद में एमओयू भी साइन करेगा और किसानों से पराली के साथ–साथ भूसा, बांस, केले के तने और गन्ने के रेशे आदि की खरीद को शुरू करेगा। उन्होंने बताया की जनपद में अभी 8.30 से 9.00 लाख मीट्रिक टन पराली का उत्पादन होता है, जिसका निस्तारण किसानों के लिए बड़ी समस्या है। लेकिन उम्मीद है कि जल्द ही पराली की यह खेप समस्या न होकर किसानों के लिए आय का साधन बन जाएगी। सीपीपीआरआई निदेशक द्वारा कच्चे माल की उपलब्धता और सस्ते श्रम को देखते हुए जनपद में पराली व गेहूं के भूसे से पल्प और टेबलवेयर जैसे उपयोगी उत्पाद बनाने के प्लांट लगाने की इच्छा व्यक्त की गई है। पराली के आर्थिक उपयोग और पर्यावरणीय निस्तारण जिलाधिकारी की सर्वोच्च प्राथमिकता में शामिल है। इससे पूर्व उनकी पहल पर आईओसी द्वारा भी जनपद के 05 एफपीओ के साथ पराली खरीद का अनुबंध किया गया है। जिसका उपयोग आईओसी द्वारा धुरियापार चीनी मिल में बायोगैस उत्पादन में किया जाएगा।
जिलाधिकारी अनुनय झा ने कहा है की सीपीपीआरआई जैसे संस्थान द्वारा जनपद में प्लांट स्थापित करने की इच्छा व्यक्त करना खुशी की बात है। धान की पराली का प्रबंधन एक चुनौतीपूर्ण काम बन गया है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा बैन होने के बावजूद पराली जलाने का काम जारी है। धान के भूसे को बार-बार जलाने से मिट्टी का कटाव भी होता है, क्योंकि वह गर्म हो जाती है और उसकी नमी, उपयोगी जीवाणु व कीट और तलछट खो जाते हैं। और मिट्टी के जैविक द्रव्य के खोने से उसकी संरचना बिगड़ जाती है। पराली के प्रबंधन की योजना के सफल होने पर उक्त समस्याओं का निराकरण हो जायेगा।