कजरी गायन में श्रृंगार और वियोग का सम्मिश्रण होता है ।

मिठौरा । संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश के लोकजनजाति संस्थान लखनऊ द्वारा आयोजित सृजन श्रृंखला के अंतर्गत कजरी गायन पर प्रकाश डालते हुए विद्यालय के प्राचार्य दिलीप मिश्रा ने कहा कि कजरी गायन का भाव नायिका के श्रृंगार एवं वियोग से जुड़ा होता है।जब नायिका का पति परदेश में होता है तो वहीं कजरी में विरह का भाव होता है जबकि यदि पति खेत खलिहान में सावन के महिने में जब झूला का पेग मारता है तो नायिका की प्रसन्नता से श्रृंगार का पक्ष भारी हो जाता है । शुक्रवार को रामनरायण फूल बदन इंटर कॉलेज में कजरी कार्यशाला के पांचवें दिन बच्चों ने पूर्व में सीखे हुए कजरी गीत प्रशिक्षक दिग्विजय मौर्य की उपस्थिति में कइसे जाऊँ भरन गगरिया, गोरी झूलि गई झुलुआ हजार में एवं लछुमन कहां जानकीय होईहे एहिशन विकट अन्हरिया ना गाकर सुनाया, रिदम के साथ सुर ताल मिलाकर गीत गाकर बच्चों ने खूब आनंद उठाया । संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित उक्त कार्यशाला के प्रति महराजगंज जनपद के अन्य विद्यार्थियों में खूब चर्चा हो रही है। दिनेश मिश्रा सहित अमरनाथ गुप्त, अभिषेक नायक, रामप्रताप तिवारी, सत्यभूशण मिश्रा, अरबिद यादव,तबला पर पप्पू यादव हारमोनियम पर हरी लाल पांडे संगत कर रहे थे ।