महराजगंजउत्तर प्रदेश

बालश्रम कानून की उड़ रही धज्जिया जिम्मेदार बेखबर

महराजगंज । फरेन्दा जिन नन्हे-मुन्ने बच्चों के हाथों में कापी, किताब और पेंसिल होनी चाहिए उन्ही हाथों में आज कप प्लेट और बर्तन धोते देखा जा रहा है। चाय की दुकानों, होटल ढाबा पर यह नौनिहाल जिनके हाथों में देश की बागडोर होगी सर्दी गर्मी और बरसात में अथक परिश्रम करते देखे जाते हैं। जहां एक तरफ देश में सरकार बाल श्रमिक विद्या व उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना एकीकृत बाल सुरक्षा अधिनियम की शुरूआत करके बाल श्रमिकों के भविष्य सवारने के लिए करोड़ों रुपए पानी में बहा रही है। वही यह अभियान धरातल पर हवा -हवाई साबित हो रहा है।सच्चाई तो कुछ और ही बया कर रही है। बाल श्रम प्रतिषेध एवं विनियमन अधिनियम के अनुसार 14 वर्ष से कम बालक बालिका बाल श्रमिक माने जाते है 14 से 18 वर्ष के बच्चो को काम करने की अनुमति है। लेकिन उन्हे खतरनाक व्यवसायों में काम करने पर प्रतिबंध लगाया गया है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद के अनुसार खतरनाक व्यवसाय या प्रक्रियाओं में उनके रोजगार पर रोक लगाकर बच्चो के अधिकारों और कल्याण की रक्षा करना है। और प्रत्येक 12 जून को अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, विश्व भर में आई एलओ घटकों और साझेदारों के साथ मिलकर विश्व बाल श्रम निषेध दिवस मनाता है। इसके लिए बाल मजदूरों से मजदूरी कराने वाले लोगों के खिलाफ जुर्माना और सजा का प्रावधान है। लेकिन विभागीय लापरवाही के कारण बाल श्रमिक से तमाम ढाबों ,चाय की दुकानों , होटलों, मोटरसाइकिल रिपेयरिंग से लेकर होटलों, चाय-नाश्ता या किराना दुकानों शराब व बियर की दुकानो के समीप लगे ठेलो पर बाल श्रमिकों को काम करते देखा जा रहा है। यही नहीं कई बच्चे कूड़े की ढेर पर अपना बचपन तलाशते देखे जाते हैं। बाल श्रम उन्मूलन के लिए कई तरह की योजनाएं चलाई गई हैं। यहां तक कि उन्हें शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए उनके लिए निःशुल्क शिक्षा व्यवस्था की गई हैं। बाल श्रम रोकने के लिए कानून बनाकर दोषी लोगों को दंडित करने का प्रावधान भी बना, लेकिन इसका अपेक्षित परिणाम अब तक सामने नजर नहीं आ पा रहा है। लोग बाल मजदूर से खुलेआम काम करा रहे हैं, क्योंकि छोटे बच्चे कम मजदूरी पर काम करते हैं। इतना करने के बाद भी उसे उस काम के बदले में कम मजदूरी मिलती है। ऐसे में बाल मजदूर शोषण के शिकार हो रहें हैं। बाल श्रम उन्मूलन की दिशा में प्रशासन ठोस कार्रवाई करने के बजाय महज खानापूर्ति कर अपने कर्तव्य का इति श्री कर लेता है। प्रशासन के अधिकारी कभी कभार क्षेत्र में नजर आते हैं। फरेंदा कस्बे के विष्णु मंदिर के पास छोले भठूरें तथा चाय की दुकानों पर बच्चे सुबह से लेकर रात तक बर्तन धोते देखे जा सकते हैं। पकडी , महलगंज, भैया फरेन्दा सहित तमाम चौराहों पर बाल श्रमिकों से कार्य कराया जाता है । जबकि जिम्मेदार अधिकारी नजर अंदाज एवं खानापूर्ति करके चले जाते हैं, जिससे यह कार्रवाई सिर्फ कागजों में चल रही हैं।कस्बे में मिठाई, चाय, चाट पकौंड़ी, किराना, मोटर रिपेयरिंग, मिनिरल वाटर सप्लाई, आदि दुकानों पर बाल श्रमिक काम करते हमेशा नजर आते हैं। जबकि जिम्मेदारों का इन दुकानों पर अक्सर आना जाना लगा रहता है। इसके बाद भी कार्यवाही शून्य के बराबर होती हैं। दरअसल इन बाल श्रमिकों की मजबूरी से घर का खर्च चलता है।इन बाल श्रमिकों को पैसे का प्रलोभन देकर काम करवाया जाता है।इस संबंध में श्रम विभाग के अधिकारी ने बताया कि मेरे पास स्टाफ नहीं है। स्टाफ के कमी का हवाला देकर इतिश्री कर लेते है।

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