यज्ञ में कथा रसपान कर भक्ति में लीन हो रहे श्रद्धालु ।
मिठौरा ।पिपरा सोनाड़ी में रुद्र महायज्ञ के तीसरे तीन रविवार को प्रवचन कर्ता अंजली द्विवेदी के द्वारा सती दहन प्रसंग का रसपान कराया गया। जिसमें द्विवेदी ने बताया कि भारद्वाज याज्ञवल्क्य से पूछते है कि राम भी दस बीस होते है । क्या? एक राम को तो सभी जानते हैं । जो अवध नरेश चक्रवर्ती सम्राट दशरथ के पुत्र है । जिन्होंने नारी की विरह में अपार दुःख उठाया जबक्रोध आया तो रावण को मार दिया उसी राम को भगवान शिव निरन्तर भजते रहते है । या कोई और भी राम है। मेरे अंदर संदेह बन गया है इसलिए हे प्रभु हमे वो कथा सुनाईये जिसे सुनकर हमारे शंशय दूर हो जाये। ईस पर याज्ञवल्क्य मुस्करा कर कहते है कि तात हमने तुम्हारे चतुरायी को जान लिया है। तुमने मन वचन कर्म तीनो तरह से भगवान के भक्त हो और तुम उनके रसमयी कथा सुनना चाहते हो इसलिए इस तरह का प्रश्न कर रहे हो अब मैं उमा और शिव का वह कथा कहता हूं कि जिसे सुनकर तुम्हारे संदेह दूर हो जाएगी। फिर वे कथा सुनाते है। एक बार त्रेता युग मे भगवान शिव अगस्त ऋषि के पास गए उनके साथ जगत जननी जगदम्बा सती भी थी। ऋषि ने सम्पूर्ण जगत का ईश्वर जानकर शिव का पूजन किया। उसको लेकर सती को संदेह होता है स्वयं वक्ता ही स्रोता को प्रणाम करेगा तो वह क्या कथा सुनाएगा। इस तरह से सती का मन कथा में नही लगा। भोलेनाथ ने बड़े ही प्रेम से कथा का रसपान किया । फिर मुनिवर अगस्त से विदा लेकर अपने कैलाश को ओर चल दिये। उसी समय मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम रघुवंश में अवतार लिए थे। जिन्होंने पिता के वचन से राज्य का त्याग कर तपस्वी के वेश में दंडक वन में विचरण कर रहे थे। उसी दौरान भोलेनाथ उनका फ़र्शन किया और उनके मुख से निकल गया कि जगत को पवित्र करने वाले सच्चिदानंद की जय हो। सती ने यह सुनकर डालने मन मे विचार करने लगी कि सारा जगत भोलेनाथ कल प्रणाम करता है। इन्होने एक साधारण मानव को प्रणाम किया। इसी प्रकार सती को फिर संदेह हो जाता है। भोलेनाथ कहते है कि वे कोई साधारण मानव नही है वे परब्रह्म परमेश्वर है। जिन्हें सारा जगत प्रणाम करता है। सती के अंदर किसी तरह से ज्ञान का प्रादुर्भाव नही होता है इसलिए भोलेनाथ ने सती को श्रीराम का परीक्षा लेने भेज देते है। फिर भोलेनाथ सती का त्याग करदेतेहै। और उनकी अखण्ड समाधि लग जाती है। सतासी हजार वर्ष बाद जब उनकी समाधि खुलती है तो रामनाम की उच्चारण करने लग जाते है सती उनके पास जाती है। वे सामने बैठने के लिए आसन देते है। फिर वे कथा सुनने लग जाते है। फिर भी सती का कथा में मन नही लगता है। वे चारो तरफ देखती है अचानक आकाश में एक विमान दिखाई देती है फिर सती भोलेनाथ से पूछती है ये विमान कहा जा रहा है तब भोलेनाथ कहते है कि सब आपके पिता के घर जा रहे है। जहां यज्ञ हो रहा है। दाती वहाँ जाने के ये जिद करती है। जबकि भोलेनाथ मना करते है।