समय रहते कान की बीमारियों का उपचार जरूरी-एसीएमओ
बधिरता रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए चिकित्सकों का दो दिवसीय प्रशिक्षण सम्पन्न

महराजगंज ।बधिरता रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए नगर के एक विवाह भवन में आयोजित चिकित्सकों का दो दिवसीय प्रशिक्षण बुधवार को सम्पन्न हो गया। प्रशिक्षण कार्यक्रम में अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ.राकेश कुमार ने कहा कि समय रहते कान की बीमारियों का उपचार जरूरी है। सही उपचार के लिए कानों की संरचना के बारें में जानना भी आवश्यक है।
उन्होंने कहा कि दोनों कानों में सुनने में होने वाली क्षति को बधिरता कहा जाता है। श्रवण बाधित से पीड़ित को सुनने में परेशानी या बहरापन हो सकता है। यदि व्यक्ति कुछ भी नहीं सुनता है तो वह बहरेपन से पीड़ित हो सकता है।
डिप्टी सीएमओ डाॅ. वीर विक्रम सिंह ने कहा कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत बहरेपन के लिए उत्तरदायी समस्या का जल्द पहचान और उपचार के उद्देश्य से राष्ट्रीय बधिरता बचाव एवं रोकथाम कार्यक्रम ( एनपीपीसीडी) का संचालन किया जा रहा है। कार्यक्रम का उद्देश्य बीमारी या चोट के कारण होने वाली बधिरता की रोकथाम और बहरेपन से पीड़ित सभी आयु वर्गों के व्यक्तियों को चिकित्सकीय सुविधा उपलब्ध कराना है।
उन्होंने कहा कि दूसरे व्यक्तियों को स्पष्ट सुनने में परेशानी, लोगों को दोबारा बोलने के लिए आग्रह करना, ऊंची आवाज के साथ संगीत सुनना या टीवी देखना, दरवाजे की घंटी या मोबाइल की आवाज सुनने में असमर्थ होना बहरेपन की प्रारंभिक संकेत और लक्षण हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में चिकित्सक से सम्पर्क करना जरूरी है।
नाक, कान, गला विशेषज्ञ डाॅ अनिरूद्ध सिंह( सर्जन) ने बताया कि कान की बीमारियों के इलाज से पहले कान की संरचना को समझना जरूरी है, तभी बहरेपन का सटीक इलाज हो सकता है। पहले यह समझना जरूरी है कि कान की बीमारी कितने प्रकार की होती है? कैसे एक छोटी सी लापरवाही बड़ी समस्या का रूप ले लेती है।
उन्होंने कहा कि कुछ मामलों में कान में झनझनाहट या कान के आसपास के हिस्से में दर्द होना बहरेपन की शुरुआत के लक्षण हो सकते हैं। अगर सही समय पर इसकी जांच करा ली जाए तो बहरेपन से बचा जा सकता है। अगर कान में पस पड़ जाए तो अपने मन से कोई कान का ड्राप नहीं डालना चाहिए और न कोई दवा खानी चाहिए। सबसे पहले चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए। उन्होंने बच्चों और वयस्कों के कान की बीमारियों के उपचार के बारे में विस्तार से बताया।
उन्होंने यह भी कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चे तालाब, नहर तथा पोखरों में स्नान करने जाते हैं जिससे उनके कान में गंदा पानी चला जाता है और कान में फंगस इन्फेक्शन हो जाता है। कुछ लोग झोलाछाप के पास कान का इलाज कराने चले जाते हैं। झोलाछाप कान साफ करने के लिए हाईड्रोजन पराक्साइ डाल देते हैं। जिससे बीमारी और गंभीर हो जाती है। कोई भी व्यक्ति अपने मन से कान में तेल और कोई दवा न डालें।
प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले चिकित्सकों में डाॅ अधिदेव डाॅ. अहसन, डाॅ. जयनेन्द्र, डाॅ.शास्वत सेन, डाॅ.अमित विक्रम, डाॅ.राकेश कुमार सिंह, डाॅ.मनीष खन्ना, डाॅ.सतेन्द्र कुमार, डाॅ. शमशाद खान तथा डाॅ.मुकेश गुप्ता आदि के नाम हैं। इस अवसर पर जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डाॅ केपी सिंह और जिला कार्यक्रम प्रबंधक नीरज सिंह भी मौजूद रहे।