इंडो-नेपाल क्षेत्र में परवान चढ़ी गेहूं व यूरिया की तस्करी।

आशुतोष की रिपोर्ट
परसामलिक।भारत-नेपाल सीमा क्षेत्र से सटे इलाकों में इन दिनों गेहूं, यूरिया, डीएपी , हार्डवेयर समेत अन्य सामानों की बड़े पैमाने पर तस्करी हो रही है। तस्कर पगडंडी के रास्ते से सीमा पर तैनात सुरक्षा एजेंसियों के लोकेशन को पता कर मौका पाते ही अवैध ढंग से बाइक के जरिए नेपाल भेज दे रहे हैं। इससे दोनो देशों सरकार को राजस्व की क्षति का सामना करना पड़ रहा है। सीमा पर हो रही तस्करी की पुष्टि सुरक्षा एजेंसियो द्वारा समय समय पर की जा रही बरामदगी से की जा सकती है। हम बात कर रहे है इंडो नेपाल सीमा से सटे परसामलिक थाना क्षेत्र अंतर्गत रेहरा, अहिरौली नाके से प्रतिदिन नौतनवा -ठूठीबारी मार्ग पर बेलभार के रास्ते पिकअप के जरिए गेंहू मंगाकर पहले अवैध गोदामों में डंप करते है फिर मौका देख बाइक के जरिए पगडंडी रास्तों से नेपाल भेज मोटा मुनाफा कमा रहे हैं। एक कैरियर ने नाम नही छापने के शर्त पर बताया की इस काले कारोबार में दर्जनों की संख्या में बाइक सवार लगे हुए है उन्हे प्रति चक्कर के हिसाब से करीब 150 से 200 रुपए मिलते है। वही खरीफ का सीजन आते ही नेपाली क्षेत्र में धान की बुआई के लिए सब्सिडी युक्त भारतीय यूरिया व डीएपी की डिमांड बढ़ जाती है। तस्कर पहले भारतीय क्षेत्र में स्थित दुकानों से ऊंचे दाम में यूरिया व डीएपी की खरीददारी करते है फिर सौ से दो सौ रुपए प्रति बोरी मुनाफा लेकर चोर नाकों से सीमा पार बने अवैध गोदामों में पहुंचा देते है। गेहूं की तस्करी मे स्थानीय लोगों के अलावा कुछ बाहर की भी पार्टियों की संलिप्तता की बातें सामने आ रही हैं। आरोप है कि कुछ पुलिस कर्मियों की मिलीभगत से तस्कर अपने मंसूबे को अंजाम दे रहे हैं।
*थाने में तैनात कारखास से सांठगांठ की वजह से चल रहा बेखौफ तस्करी का धंधा*
सूत्रों की माने में परसामलिक थाने में तैनात कारखास तथाकथित यादव जी की सांठगाठ की वजह से थाना क्षेत्र अंतर्गत सीमावर्ती नाकों से अवैध तस्करी का धंधा फल फूल रहा है।बताया जा रहा है की इसके एवज में अलग अलग नाकों से काम कर रहे व्यापारी प्रतिमाह कारखास की मदद से थाने पर चढ़ावा पहुंचा देते है जिससे उनके काम में स्थानीय थाने द्वारा किसी प्रकार का अड़चन नहीं आता और तो और अगर प्रशासन द्वारा छापेमारी की जाती है तो उनके पास कासखास पहले ही सूचना पहुंचा देते है। बता दे कि हर थाने में वसूली के लिए किसी न किसी सिपाही या दीवान को बतौर ‘कारखास’ रखा जाता है। थाने से होने वाली पूरी वसूली की कमान से लेकर थाने के मद में होने वाले खर्च का ब्योरा भी कारखास ही रखता है। हालात यह हैं कि भले ही थानेदार का तबादला हो जाए, लेकिन ‘कारखास’ बरसों तक जमा रहता है।